इसे आप काल के चक्र का प्रवाह एवं पुनर्चक्रीकरण भी मान सकते हैं कि जिस भारत का वैश्विक अर्थव्यवस्था में कभी 32 प्रतिशत का योगदान हुआ करता था, वह भारत एक बार फिर उसी दिशा में आगे बढ़ने लगा है. दुनिया के अर्थशास्त्री भारत के इस नए रूप को देख कर चमत्कृत हैं, वहीं अमेरिका को लगता है कि यदि इसी तरह से भारत आगे बढ़ता रहा तो कहीं ऐसा न हो कि डॉलर के रूप में जो विश्व में एक देश की दूसरे देश के साथ व्यापार करने की जो अनिवार्यता या आवश्यकता चली आ रही है, वह समाप्त न हो जाए. अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना रहे इसलिए आज वह इससे जुड़े जरूरी कदम उठा रहा है और भारत इसके लिए अपने हिस्से का दांव खेल चुका है.
अभी भारत में लोकतंत्र का महापर्व चल रहा है, देश के आम नागरिक अपने लिए सरकार का चुनाव कर रहे हैं. ऐसे समय में सभी राजनीतिक पार्टियों के प्रमुख नेताओं के साक्षात्कार लगातार मीडिया में आ रहे हैं, जिसमें कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इंटरव्यू सबसे ज्यादा मीडिया में देखे जा रहे हैं, इनमें पूछे गए प्रश्नों में जब भी भारत की विदेश नीति का जिक्र हुआ है, तो प्रधानमंत्री मोदी यह साफ कहते हुए देखे-सुने जा सकते हैं कि ”भारत अपनी नीति स्वयं तय करता है, वह आज किसी भी विदेशी प्रभाव और दबाव में आकर अपने फैसले नहीं लेता. यदि हमें तेल की जरूरत है और वह रूस से सस्ता मिलता है तो भारत उसे खरीदेगा, फिर इससे अमेरिका या अन्य देश को क्या लगता है या नहीं, इससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता. हम अपने देश की आवश्यकताओं के अनुसार ही निर्णय लेते हैं. न कि कोई देश खुश होगा या बुरा मान जाएगा, इस आधार पर.” इसी तरह की अन्य बातें भी स्पष्ट तौर पर प्रधानमंत्री मोदी द्वारा कही गई हैं.
वस्तुत: प्रधानमंत्री मोदी जो कह रहे हैं, वह कितना सही है, इसकी भी पड़ताल आवश्यक है. आर्थिक स्तर पर जब उनकी कही बातों का अध्ययन किया जाता है तो वास्तव में वह सही साबित होती हैं. दुनिया की तमाम रेटिंग एजेंसियां आज भारत को विश्व के सभी देशों के बीच सबसे तेज दौड़ता हुआ तो देख ही रही हैं, इससे जुड़ी भविष्यवाणी भी कर रही हैं. साथ ही जो एक नया मोड़ सामने आया है, वह हर देश भक्त भारतीय को गदगद कर देता है . वह है भारतीय रुपये का दुनिया की आरक्षित मुद्राओं में शामिल होने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ना.
एक साक्षात्कार जाने-माने अर्थशास्त्री नूरियल रूबिनी का पढ़ने को मिला. उनका कहना है कि समय के साथ भारतीय रुपया दुनिया की वैश्विक आरक्षित मुद्राओं में से एक होगा. ”यह (भारतीय रुपया) खाते की एक इकाई हो सकता है, यह भुगतान का साधन हो सकता है, यह मूल्य का भंडार बन सकता है. निश्चित रूप से, समय के साथ रुपया दुनिया में विभिन्न प्रकार की वैश्विक आरक्षित मुद्राओं में से एक बन सकता है.” रूबिनी के अनुसार कुल मिलाकर समय के साथ डी-डॉलरीकरण की प्रक्रिया होगी. वॉल स्ट्रीट द्वारा ‘डॉक्टर डूम’ के नाम से मशहूर रूबिनी इसके पीछे का कारण भी बताते हैं और कहते हैं कि अमेरिका की वैश्विक अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी 40 से 20 फीसदी तक गिर रही है. ”सभी अंतरराष्ट्रीय वित्तीय और व्यापार लेनदेन में अमेरिकी डॉलर का दो-तिहाई होना कोई मतलब नहीं रखता है. इसका एक हिस्सा भू-राजनीतिक है.”
वे कहते हैं, ”कोई देख सकता है कि भारत दुनिया के बाकी हिस्सों के साथ जो व्यापार करता है, उसमें से कुछ के लिए रुपया कैसा हो सकता है, खासकर दक्षिण-एशियाई क्षेत्र में यह एक महत्वपूर्ण मुद्रा के रूप में आज सभी के सामने आ रहा है.” रूबिनी सिर्फ इतना कहकर ही नहीं रुकते, वे आगे कहते हैं कि भले ही अभी तक कोई अन्य मुद्रा नहीं है जो अमेरिकी डॉलर को उसके पायदान से नीचे गिराने में सक्षम हो, ग्रीनबैक तेजी से चीनी युआन के लिए अपनी प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त खो रहा है और दूसरी ओर भारत का रुपया अन्य कई देशों में डॉलर के स्थान पर दो देशों (भारत एवं अन्य) के बीच व्यापारिक संबंध में परिचालन का स्थान लेता जा रहा है.
रूबिनी मध्यम अवधि में भारत में सात प्रतिशत की वृद्धि होते देख रहे हैं . उनका कहना यह भी है ”भारत की प्रति व्यक्ति आय इतनी कम है कि वास्तव में सुधार के साथ, निश्चित रूप से सात प्रतिशत, लेकिन आठ प्रतिशत से भी अधिक संभव है. लेकिन उस विकास दर को हासिल करने के लिए आपको कई और आर्थिक सुधार करने होंगे जो संरचनात्मक हों. और यदि आप इसे हासिल कर लेते हैं, तो आप इसे कम से कम कुछ दशकों तक बनाए रख सकते हैं.” लेकिन इसी के साथ वह यह भी साफ कर देते हैं कि यह बहुत हद तक देश की सरकार द्वारा बनाई जानेवाली आर्थिक नीतियों पर निर्भर करता है.
सैमको सिक्योरिटीज के संस्थापक, सीईओ, सैमको वेंचर्स जिमीत मोदी भी भारत के आर्थिक क्षेत्र को लेकर बहुत सकारात्मक प्रतिक्रिया देते हैं. वे साफ बताते हैं ”अमेरिका के महाशक्ति होने का एक प्रमुख कारण इसकी मजबूत मुद्रा है, जो सभी वैश्विक केंद्रीय बैंकों के विदेशी मुद्रा भंडार के आधे से अधिक के लिए जिम्मेदार है. अधिकांश वैश्विक व्यापार यूएसडी में होता है. यह संयुक्त राज्य अमेरिका को अधिक पैसा छापने में आसानी देता है और अन्य देशों से अधिक ऋण लेने की सुविधा देता है.”
वह कहते हैं, ”वर्तमान में, भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख विकासशील अर्थव्यवस्था है. जल्द ही इसके तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की उम्मीद है, वैश्विक भावनाएं भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर उत्साहित हैं. जेपी मॉर्गन और ब्लूमबर्ग ने हाल ही में भारत को अपने ग्लोबल इमर्जिंग मार्केट बॉन्ड इंडेक्स में जोड़ा है. इस मजबूत पृष्ठभूमि में, आईएनआर को एक वैकल्पिक आरक्षित मुद्रा बनाने का लक्ष्य एक आशाजनक मामला है. आईएनआर (भारतीय रुपया) की वैश्विक स्वीकृति को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा उठाए गए कदम सही दिशा में और सराहनीय हैं.”
जिमीत मोदी का मानना यह भी है ”आईएनआर के अंतर्राष्ट्रीयकरण से न केवल विदेशी व्यापार पर लेनदेन लागत में बचत होगी बल्कि भारतीय वित्तीय बाजार के लिए सीधे लाभांश भी मिलेगा. आईएनआर (भारतीय रुपया) के मजबूत मुद्रा बनने से ऋण बाजार और इक्विटी बाजार में पूंजी प्रवाह बढ़ेगा. बाजार में तरलता और निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा. इसके अतिरिक्त, स्थिर और ठोस आईएनआर भारतीयों के लिए क्रय शक्ति बढ़ाएगा और आर्थिक कल्याण के साथ-साथ वैश्विक निवेशकों के लिए बेहतर रिटर्न को बढ़ावा देगा. इस प्रकार, आईएनआर का अंतरराष्ट्रीयकरण भारत के साथ-साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए भी लाभप्रद स्थिति सुनिश्चित करता है.”
कहने को विनोद बंसल विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख हैं, लेकिन इसके साथ ही उनकी एक पहचान पेशेवर व्यवसायी एक्सपर्ट की भी है. वे जिन भी संस्थानों में आर्थिक सलाहकार के रूप में जुड़े हैं, आर्थिक जगत में उन्हें आज नई ऊंचाइयां प्राप्त करते देखा जा सकता है, उन्होंने इस विषय पर बेहद उत्साहवर्धक जानकारी दी है . बंसल न्यूयार्क टाइम्स के हवाले से बताते हैं, ”अब डॉलर का स्थान भारत का रुपया ले लेगा… भारत ने Rupee (रूपी) का आरंभ 13 जुलाई 22 को ग्लोबल करना शुरू किया था, आज 8 महीने में अंतरराष्ट्रीय होने जा रहा है.. क्या आश्चर्य की बात नहीं? 30 देश आज Rupee (रूपी) में लेनदेन कर रहे है.”
विनोद बंसल कहते हैं, ”सऊदी भारत को तेल Rupee (रूपी) में कर रहा है. डायरेक्टोरेट ऑफ फॉरेन ट्रेड यानी डीजीएफटी ने एक नोटिफिकेशन भी जारी किया था की एक्सपोर्ट और इंपोर्ट रूपी में हो सकता है. आज 64 देश भारत से रूपी में लेनदेन को हामी भर चुके है, इसराइल, जर्मनी, इटली जैसे देशों ने भी रूपी में व्यापार करने की हामी भर दी है.”
फिर इतना ही नहीं है, बंसल की मानें तो ”यूपीआई का अर्थ यूनाइट पेमेंट इंटरनेशनल का बढ़ता दबदबा बढ़ता जा रहा है. 50 देशों में हमारा रुपया का लेनदेन होते ही आईएमएफ में स्थान पा जाएगा, फिर हर देश को रिजर्व में रूपी भी रखना पड़ेगा. बस इंतजार है भारत के रिजर्व 1.5 ट्रिलियन होने का, भारत विश्व के शीर्ष पायदान पर देखा जाने लगेगा. भारत के टुकड़े करने का सपना देखने वाले जॉर्ज सोरोस जैसे दसियों खरबपति और विपक्ष औंधे मुंह पड़े होंगे. हम क्या करें… बस आज की सरकार पर भरोसा रखे और साथ चले. विपक्ष के बहकावे में न आएं.”
डॉ. मयंक चतुर्वेदी
(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं.)
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