शिमला: हिमाचल प्रदेश के तीन निर्दलीय विधायकों के इस्तीफे के मामले में नया घटनाक्रम सामने आया है. तीनों निर्दलीय विधायकों को दलबदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य घोषित करने की मांग को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व कैबिनेट मंत्री जगत सिंह नेगी की ओर से विधानसभा सचिवालय में याचिका दायर की गई है. इस याचिका पर विधानसभा सचिवालय ने शुक्रवार को निर्दलीय विधायकों को नोटिस जारी किया है. विधानसभा सचिवालय ने मामले की सुनवाई चार मई को निर्धारित की है. निर्दलीय विधायकों को इस तारीख को स्पीकर के समक्ष पेश होकर जवाब देना होगा.
दरअसल, जगत सिंह ने विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया के समक्ष याचिका दायर करते हुए निर्दलीयों के खिलाफ दलबदल विरोधी कानून के तहत कार्रवाई करने की मांग की है. उनका कहना है कि इस्तीफा स्वीकार होने से पहले निर्दलीय किसी राजनीतिक दल में शामिल नहीं हो सकते थे. तीनों पर भाजपा का भारी दबाव है और इसी दबाव के चलते उन्होंने त्यागपत्र दिए हैं. उनके त्यागपत्र अभी भी अध्यक्ष के पास लंबित हैं.
बता दें कि यह मामला प्रदेश हाईकोर्ट में भी लंबित है. प्रदेश हाई कोर्ट में निर्दलीय विधायकों के इस्तीफों को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई 30 अप्रैल के लिए टल गई. तीन निर्दलीय विधायकों ने इस्तीफे मंजूर न करने और उन्हें स्पीकर द्वारा कारण बताओ नोटिस जारी करने के खिलाफ याचिका दायर की है. मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव और न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ के समक्ष पिछले कल गुरूवार को इस मामले पर सुनवाई हुई.
निर्दलीय विधायकों ने 22 मार्च को सौंपे थे इस्तीफे
देहरा से निर्दलीय विधायक होशियार सिंह चंब्याल, नालागढ़ से निर्दलीय विधायक केएल ठाकुर और हमीरपुर से निर्दलीय विधायक आशीष शर्मा ने विधानसभा की सदस्यता से 22 मार्च को विधानसभा अध्यक्ष तथा सचिव को अपने इस्तीफे सौंपे थे. इस्तीफों की एक-एक प्रति राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल को भी दी थी. राज्यपाल ने भी इस्तीफों की प्रतियां विधानसभा अध्यक्ष को भेज दी थीं. इनका आरोप है कि विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने इन्हें मंजूरी नहीं दी और इस्तीफे के कारण बताने के लिए दस अप्रैल तक स्पष्टीकरण देने को कहा. इन विधायकों ने कारण बताओ नोटिस को खारिज कर इस्तीफे मंजूर करने की गुहार लगाई है. निर्दलीय विधायकों का तर्क है कि जब उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष को व्यक्तिगत तौर पर मिलकर इस्तीफे दिए गए, तो उनके इस्तीफे मंजूर की बजाए उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी करना असवैंधानिक है.
सभार- हिन्दुस्थान समाचार