शिमला: हिमाचल प्रदेश में मुख्य संसदीय सचिवों (सीपीएस) की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बुधवार को भी हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर व जस्टिस बीसी नेगी की खंडपीठ ने इस मामले को लेकर लगातार तीन दिन तक चली बहस के बाद अब आठ मई को सुनवाई तय की है.
प्रदेश सरकार की तरफ से मामले में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ताओं से पैरवी करने और बहस के लिए थोड़ा और समय मांगा गया, जिस पर हाई कोर्ट ने दो सप्ताह का समय देते हुए मामले को लेकर 8 मई की तारीख तय की है. अब सरकार की तरफ से मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और मुकुल रोहतगी पैरवी कर सकते हैं.
मामले पर सुनवाई के दौरान सीपीएस की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि वे केवल मंत्रियों को उनके कार्यों में सहायता प्रदान करते हैं. उनका मंत्रिमंडल के कार्यों से कोई लेना-देना नहीं है. उनकी ओर से कहा गया कि उनकी नियुक्ति कानून के अनुसार की गई है और उनकी नियुक्ति से किसी भी नागरिक के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं होता.
दरअसल, प्रदेश सरकार ने छह सीपीएस बनाए हैं जिनको लेकर भाजपा के 12 विधायकों ने हाई कोर्ट में चुनौती दी है. इन नियुक्तियों को असंवैधानिक बताया है और इन्हें रद्द करने के साथ साथ विधायक की सदस्यता भी रद्द करने की कोर्ट से मांग की है. हिमाचल हाईकोर्ट के एडवोकेट जनरल अनूप रत्न ने बताया कि सीपीएस मामले में सरकार ने अपना पक्ष रखा है.
कोर्ट को बताया गया है कि सीपीएस की नियुक्तियां कानूनी रूप से की गई है और सीपीएस को किसी प्रकार की फाइल में फैसला लेने की अनुमति नहीं है, बल्कि वे केवल सुझाव दे सकते है क्योंकि हाई कोर्ट की जजमेंट पूरे देश के लिए कानून बनेगा इसलिए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ताओं को पैरवी करने के लिए समय मांगा था, ताकि मामला और बेहतर तरीके से पेश किया जा सके.
साभार- हिन्दुस्थान समाचार