शिमला: हिमाचल में अब प्रशासनिक मशीनरी अनुबंध पर नौकरी की नीति को समाप्त करने के लिए काम करेगी. हिमाचल में सरकारों की इच्छा यह थी कि अनुबंध नौकरी की नीति से खजाने पर कम भार पड़ेगा, परंतु इस समय लगातार हाई कोर्ट द्वारा आने वाले फैसलों से ये नीति कारगर नहीं दिखाई दे रही.
कोर्ट से आदेश दिया जा रहे हैं कि अनुबंध सेवाकाल को भी पेंशन के लिए गिना जाए. लगातार ऐसे फैसलों के आने के बाद सुक्खू की प्रशासनिक मशीनरी इस दिशा में सोचने- समझने पर विवश हुई. प्रदेश में सुक्खू सचिवालय में गुरुवार को एक अहम बैठक हुई. सीओएस यानी कमेटी ऑफ सेक्रेटरीज की बैठक मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना की अगुवाई में हुई. इस बैठक में अनुबंध पर नौकरी वाली नीति को खत्म करने की प्रक्रिया और इसके नफे-नुकसान पर चर्चा की गई.
इस बैठक में,अनुबंध सेवाकाल को पेंशन के लिए गिने जाने वाले मामलों को राज्य सरकार हाई कोर्ट में डिफेंड नहीं कर पा रही है. कोर्ट से लगातार ऐसे आदेश आ रहे हैं जिसमें सेवानिवृत्त कर्मियों को अनुबंध सेवाकाल की पेंशन देने के लिए बोला जा रहा है. ऐसे में अब राज्य सरकार अनुबंध पॉलिसी को खत्म करने की तैयारी कर रही है. सीओएस ने बैठक में अनुबंध नीति के अल्टरनेट यानी विकल्प के रूप में एक नई नीति का मसौदा बनाने के लिए बोला है. बैठक में, फाइनांस, पर्सनल और कई संबंधितों से भी विचार-विमर्श किया गया. फिलहाल ये तय किया गया है कि नेशनल हेल्थ मिशन के आउटसोर्स मॉडल को अपनाया जाए. मुख्य सचिव की ओर से इस मॉडल की गहराई से स्टडी करने के निर्देश दिए गए हैं.
गौरतलब है कि सुक्खू सरकार के मुख्य सचिव ने आयुष विभाग के बहुचर्चित शीला देवी बनाम हिमाचल सरकार के केस वाले निर्णय को लागू करने के लिए वित्त सचिव की अगुवाई में पहले ही कमेटी का गठन किया हुआ है. इस मामले में भी अनुबंध अवधि को पेंशन के लिए गिना जा रहा है. इसके बाद नागरिक आपूर्ति विभाग में ताज मोहम्मद बनाम हिमाचल सरकार मामले में भी अनुबंध अवधि को सीनियोरिटी और वित्तीय लाभों के लिए भी गिना जाएगा. ऐसे में अनुबंध नीति को आगे की अवधि के लिए जारी रखने में राज्य सरकार को कोई लाभ नहीं दिख रहा है.
उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार ने अनुबंध नीति को जारी ही इसलिए किया था क्योंकी खजाने पर भार कम पड़े. इससे पूर्व अनुबंध सेवाकाल आठ साल का होता था. घटते-घटते अब यह दो साल रह गया है. कर्मचारी अनुबंध सेवाकाल को सीनियोरिटी के लिए काउंट करने और अन्य वित्तीय लाभ के लिए हाई कोर्ट में मामला ले जाते हैं. कोर्ट से उनके पक्ष में फैसले लिया गया हैं. इसलिए अनुबंध नीति को आगे जारी रखने का कोई लाभ नहीं दिख रहा है.
फिलहाल, बैठक में ये चर्चा की गई कि ऐसी नीति लाई जाए, जिससे खजाने पर भी अधिक भार न पड़े और नियमित नियुक्ति भी नहीं देनी पड़े. साथ ही ऐसे प्रावधान किए जाएं कि अदालत के चक्कर न काटने पड़ें और सरकारी काम भी सही से चले. इन सब बातों को आधार बनाकर नई पॉलिसी ड्राफ्ट करने की मंशा है. इससे पहले मुख्य सचिव की कमेटी ने भर्ती के बाद कर्मचारियों के लिए फिक्स्ड यानी एक तय वेतन वाली भर्ती का मॉडल भी अध्ययन करने के लिए कहा है. ऐसा मॉडल गुजरात सरकार ने अपनाया है. वहीं, हिमाचल सरकार के कार्मिक विभाग ने अध्ययन किया तो मालूम हुआ कि गुजरात सरकार भी अपनी फिक्स्ड वेतन पॉलिसी का अदालतों में बचाव नहीं कर पाई है. अब प्रदेश में अफसरों को केंद्र सरकार के एनएचएम वाले आउटसोर्स मॉडल को स्टडी करने को भी बोला गया है. वित्त और कार्मिक विभाग मिलकर पॉलिसी का ड्राफ्ट तैयार बनाएंगे. राज्य में आदर्श चुनाव आचार संहिता खत्म होने के बाद कैबिनेट इस ड्राफ्ट पर अखरी फैसला करेगी. सरकार चाहती है कि कर्मचारियों को जल्दी नियमित न करना पड़े. फिलहाल, सीओएस मीटिंग में भांग की खेती को मंजूरी देने के अलावा अन्य मुद्दों पर भी चर्चा की गई.