शिमला: हिमाचल प्रदेश में विधानसभा उपचुनाव का बिगुल बज चुका है. सत्ताधारी कांग्रेस और विपक्षी भाजपा की नजरें नौ सीटों पर होने वाले उपचुनाव पर टिकी हैं. इनमें छह सीटों पर पहली जून को मतदान होना है. ये सीटें कांग्रेस के छह विधायकों को अयोग्य ठहराने से खाली हुई हैं. ये उपचुनाव तय करेंगे कि प्रदेश की सत्ता पर कांग्रेस की सुक्खू सरकार काबिज रहेगी या भाजपा सरकार बनाएगी.
हिमाचल प्रदेश में पिछले चार दशक में हुए विधानसभा उपचुनावों पर नजर डालें तो इनमें ज्यादा मर्तबा कांग्रेस का पलड़ा भारी रहा है. वर्ष 1984 से अब तक प्रदेश में 22 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव हुए हैं. इनमें कांग्रेस को 12 बार और भाजपा को 10 बार जीत मिली है.
आखिरी उपचुनाव अढ़ाई वर्ष पहले वर्ष 2021 में हुए थे, जब प्रदेश की सत्ता पर भाजपा काबिज थी. तब तीन सीटों पर हुए उपचुनाव में सत्ताधारी दल भाजपा को करारी हार मिली थी. अर्की, फतेहपुर और जुब्बल-कोटखाई विधानसभा हलकों में कांग्रेस के उम्मीदवार विजयी रहे थे. अर्की से संजय अवस्थी, फतेहपुर से भवानी सिंह पठानिया और जुब्बल कोटखाई से रोहित ठाकुर विधानसभा पहुंचे थे. रोचक बात यह है कि इसके बाद हुए वर्ष 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में भी इन तीन विधायक ने दोबारा जीत हासिल की. सुक्खू सरकार में रोहित ठाकुर शिक्षा मंत्री और संजय अवस्थी मुख्य संसदीय सचिव हैं, जबकि भवानी सिंह पठानिया को कैबिनेट रैंक का दर्जा मिला है.
चार दशक पहले वर्ष 1984 में प्रदेश के कांगड़ा जिला की परागपुर और मंडी जिला की धर्मपुर सीट पर उपचुनाव हुए थे. दोनों सीटों पर कांग्रेस ने परचम लहराया था. परागपुर में कांग्रेस के योगराज विधायक बने वहीं धर्मपुर से उपचुनाव में जीतकर कांग्रेस के नत्था सिंह विधानसभा पहुंचे. इसके बाद 1994 में भाजपा के कदावर नेता व जनसंघ के संस्थापक सदस्य ठाकुर जगदेव चंद के निधन से खाली हुई हमीरपुर सीट पर कांग्रेस की अनीता वर्मा जीतीं.
वर्ष 1995 में मान चंद राणा के निधन से सुलह सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस के कंवर दुर्गा चंद चुने गए. इसी साल किन्नौर के कांग्रेस विधायक देवराज नेगी के निधन के बाद उपचुनाव हुए. कांग्रेस ने जगत सिंह नेगी को टिकट दिया और वो पहली बार विधायक बने. वर्तमान सुक्खू सरकार में जगत सिंह नेगी बागवानी मंत्री हैं. वर्ष 1996 में शिमला शहर से कांग्रेस के आदर्श कुमार सूद और नूरपुर से कांग्रेस के रणजीत बख्शी उपचुनाव जीतकर विधायक बने थे.
वर्ष 1998 के विधानसभा चुनाव में परिणाम वाले दिन परागपुर से जीतने वाले भाजपा के वीरेंद्र कुमार का देहांत हो गया. उस समय भाजपा की धूमल सरकार बनी थी और भाजपा ने दिवंगत वीरेंद्र कुमार की पत्नी निर्मला देवी को टिकट थमाया तथा वह उप चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचीं थीं. उसी वर्ष कांग्रेस दिग्गज संत राम के निधन से खाली हुई सीट पर बैजनाथ से भाजपा के दूलो राम चुनकर आए थे. साल 2000 में सोलन में हुए उपचुनाव में भाजपा के राजीव बिंदल जीते थे. वर्तमान में राजीव बिंदल प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष हैं. वर्ष 2004 में गुलेर सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा के हरबंस राणा कांग्रेस के नीरज भारती को हराकर विधायक बने.
वर्ष 2009 में भाजपा की धूमल सरकार के दौरान रोहड़ू से भाजपा के ख़ुशी राम बालनाहटा और ज्वाली से कांग्रेस के सुजान सिंह पठानिया उपचुनाव जीतकर विधायक बने थे. वर्ष 2011 में हरी नारायण सैनी के निधन के बाद नालागढ़ से कांग्रेस के लखविंदर राणा पहली बार विधायक बने. इसी साल उप चुनाव में रेणुका से प्रेम सिंह के निधन से खाली हुई सीट पर भाजपा के हृदय राम भी जीते थे.
वर्ष 2014 में कांग्रेस की वीरभद्र सरकार के कार्यकाल के दौरान सुजानपुर सीट पर उपचुनाव में भाजपा के नरेंद्र ठाकुर जीतकर विधायक बने थे. इसके बाद विधानसभा के लिए उपचुनाव 2017 में भोरंज में हुआ था. भाजपा के कदावर नेता ईश्वर दास धीमान के निधन के बाद हुए उपचुनाव में उनके बेटे अनिल धीमान जीते थे. उन्होंने कांग्रेस की प्रोमिला को हराया था.
वर्ष 2020 में भाजपा की जयराम ठाकुर सरकार के कार्यकाल में धर्मशाला और पच्छाद सीटों पर उपचुनाव हुए थे. ये सीटें किशन कपूर और सुरेश कश्यप के लोकसभा चुनाव जीतने पर रिक्त हुई थीं. दोनों सीटों पर भाजपा ने कब्जा जमाया. धर्मशाला से विशाल नेहरिया और पच्छाद से रीना कश्यप विधायक बनीं.
आखिरी बार उपचुनाव वर्ष 2021 में भाजपा शासन के दौरान अर्की, जुब्बल कोटखाई और फतेहपुर सीटों पर हुआ था. सियासी दिग्गजों वीरभद्र सिंह, नरेंद्र बरागटा और सुजान सिंह पठानिया के निधन के कारण इन सीटों पर उपचुनाव हुए थे. तीनों सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली थी.
उपचुनाव के नतीजों पर टिका सुक्खू सरकार का भविष्य
हिमाचल प्रदेश में पहली जून को चार लोकसभा सीट पर चुनाव के साथ छह विधानसभा सीटों पर उपचुनाव भी होना है. कांग्रेस के छह विधायकों को अयोग्य घोषित किए जाने के बाद चुनाव आयोग ने सुजानपुर, बड़सर, कुटलैहड़, धर्मशाला, गगरेट और लाहौल-स्पीति विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव की घोषणा की है. इसके अलावा तीन आजाद विधायक भी विधानसभा सदस्यता को छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं. ऐसे में हमीरपुर, देहरा और नालागढ़ सीटों पर भी चुनाव आयोग उपचुनाव की घोषणा करेगा. इस तरह प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होगा. यह उपचुनाव सत्ताधारी कांग्रेस की सुक्खू सरकार का भविष्य तय करेगा.
हिमाचल विधानसभा में कांग्रेस और भाजपा विधायकों की संख्या
68 सदस्य हिमाचल विधानसभा में कांग्रेस के पास पहले 40 विधायक थे जिनमें से छह अयोग्य घोषित होने पर अब केवल 34 विधायक रह गए हैं. वहीं भाजपा की बात करें तो भाजपा के 25 विधायक चुनाव जीते थे और नौ अन्य का उन्हें समर्थन मिल रहा है. यदि सभी नौ सीटों पर उपचुनाव होते हैं और यह सभी भाजपा की झोली में जाती है तो भाजपा के भी 34 विधायक हो जाएंगे, दूसरी तरफ यदि इनमें से एक या दो सीटें कांग्रेस जीतती है तो कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिल जाएगा. हालांकि सभी नौ सीटें हारने पर कांग्रेस की सुक्खू सरकार अल्पमत में आ जाएगी.
साभार- हिन्दुस्थान समाचार