हिमाचल प्रदेश की सुक्खू सरकार को वाटर सेस कानून के मामले में हाईकोर्ट से बड़ा झटका मिला है. अदालत ने कहा कि ऐसे कानून को बनाने का हिमाचल विधानसभा के पास संवैधानिक अधिकार नहीं है. इसलिए हिमाचल सरकार की ओर से वाटर सेस कानून को लेकर जारी की गई अधिसूचना भी रद्द मानी जाएगी. न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने आज मंगलवार को यह आदेश जारी किए.
बता दें कि इस कानून को हाइड्रो पावर कंपनियों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. कंपनियों की ओर से एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने केस की पैरवी की. दिलचस्प बात ये है कि मनु सिंघवी हिमाचल में कांग्रेस के राज्यसभा उम्मीदवार थे और वे ही हिमाचल की सुखविंदर सरकार के सबसे महत्वाकांक्षी रेवेन्यू जेनरेटर स्टेप के खिलाफ हाईकोर्ट में कंपनियों के पक्ष में खड़े थे. खैर, हाईकोर्ट के ताजा आदेश के अनुसार अब हिमाचल सरकार आगे वाटर सेस वसूल नहीं कर पाएगी. संभवत, राज्य सरकार इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी.
गौरतलब है कि कांग्रेस की सुक्खू सरकार ने सत्ता में आते ही राजस्व बढ़ाने के लिए नदियों के पानी पर स्थापित हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स पर वाटर सेस लगाने का विचार बनाया था. इससे सरकार ने प्रति वर्ष कम से कम एक हजार करोड़ रुपए रेवेन्यू जुटाने का लक्ष्य रखा था. वाटर कमीशन भी बना दिया गया था और कई कंपनियों से वाटर सेस भी वसूल लिया गया था. हालांकि कंपनियों ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन वाटर कमीशन भी सक्रिय रूप से काम कर रहा था. सतलुज जलविद्युत निगम सहित कई पावर कंपनियों ने इस कानून को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.
प्रदेश में कुछ कंपनियों ने वाटर सेस जमा करवाना शुरू किया था. राज्य में 172 के करीब हाइड्रो पावर कंपनियां चल रही हैं. इन कंपनियों में से लगभग 35 कंपनियों ने 27 से 30 करोड़ रुपए के करीब सेस जमा करवा दिया था. वहीं, कमीशन ने बाकी कंपनियों को सेस जमा करवाने के लिए चरणबद्ध तरीके से नोटिस भी जारी किए थे.